जीवन-संदेश

फूल और कांटे है जीवन में


कर्म –अधीन है जीवन सारा ।


मिलता नहीं फल सर्वदा कर्म का ।


नहीं कहो यह विडम्बना है नियति का ।


नियति तो पथ पर बढ़ना है ।


देखते जाओ सपने फूलों  के


काँटों को उखाड फेकना है ।


निराशा की जब बदली छाए


इंद्र-धनुष उसमें ढूंढो तुम ।


डगमगाये जब जीवन –नौका


हिम्मत की पतवार संभालो ।


दायित्व  के जो बोझ उठाते


पथ पर पुष्प बरसते हैं उनके ।


जीवन-संदेश यही हमारा ।